हरण अर्थात हरीतकी के औषधिय लाभ

हरीतकी (हरड़) के औषधिय लाभ -

आयुर्वेद में इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरीतकी एक श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है।

इसमें लवण छोड़कर मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय ये पाँचों रस पाये जाते हैं। यह लघु, रुक्ष, विपाक में मधुर तथा वीर्य में उष्ण होती है। इन गुणों से यह वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषों का नाश करती है।

हरीतिकी के कार्य -

हरड़(हरीतकी) एक शोथहर, व्रणशोधक, अग्निदीपक, पाचक, यकृत-उत्तेजक, मल-अनुलोमक होता है । यह विशिष्ठ द्रव्यों के साथ विभिन्न रोगों में लाभदायक होती है। तथा पाचन क्रिया को ठीक करता है ।

हरण (हरीतकी ) सेवन से लाभ -

*हरड़ को चबाकर खाने से भूख बढ़ती है। तथा हरण पीसकर फाँकने से मल साफ होता है।और यदि हरण को सेंक कर खाने से त्रिदोषों को नष्ट करती है।

*हरण को खाना खाते समय खाने से यह शक्तिवर्धक और पुष्टिकारक होता है।

*पाचन शक्ति ठीक करने के लिए भोजन करने के बाद 3 ग्राम हरण का सेवन लाभदायक होता है ।

* छोटी हरड़ (हर्र) रात को पानी में भिगो दें। पानी इतना ही डालें कि ये सोख लें। प्रातः उनको देशी घी में तलकर काँच के बर्तन में रख लें। 2 माह तक रोज 1-1 हरड़ सुबह शाम 2 माह तक खाते रहें। इससे शरीर हृष्ट-पुष्ट व बलवान होता है।

* हरण बुद्धिवर्धक होता है।

* हरण नेत्र तथा अन्य इन्द्रियों का बलवर्धक बनाता है।

* हरड़ नेत्रों का बल बढ़ाती है। नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए त्रिफला श्रेष्ठ द्रव्य है। 2 ग्राम त्रिफला चूर्ण देशी घी तथा शहद के साथ लेने से नेत्रों का बल तथा नेत्र ज्योति बढ़ती है।

* रसायन कार्य -

* हरड़ साक्षात् धातुओं का पोषण नहीं करती। वह धात्वग्नि बढ़ाती है। धात्वाग्नि बढ़ने से नये उत्पन्न होने वाले रस रक्तादि धातु शुद्ध-प्राकृत बनने लगते हैं। धातुओं में स्थित विकृत कफ तथा मल का पाचन व शोधन करके धातुओं को निर्मल बनाती है। सभी धातुओं व इन्द्रियों का प्रसादन करके यह यौवन की रक्षा करती है, इसलिए इसे कायस्था कहा गया है।

* स्थूल व्यक्तियों में केवल मेद धातु का ही अतिरिक्त संचय होने के कारण अन्य धातु क्षीण होने लगते हैं, जिससे बुढ़ापा जल्दी आने लगता है। हरड़ इस विकृत मेद का क्षरण (नाश) करके अन्य धातुओं की पुष्टि का मार्ग प्रशस्त कर देती है, जिससे पुनः तारुण्य और ओज की प्राप्ति होती है।

* हरण लवण रस मांस व शुक्र धातु का नाश करता है जिससे वार्धक्य जल्दी आने लगता है, अतः नमक का उपयोग सावधानी पूर्वक करें। हरड़ में लवण रस न होने से तथा विपाक में मधुर होने से वह तारुण्य की रक्षा करती है। रसायन कर्म के लिए दोष तथा ऋतु के अनुसार विभिन्न अनुपानों के साथ हरड़ का प्रयोग करना चाहिए।

*ऋतु अनुसार हरड़ सेवन कैसे करें -

*वसंत ऋतु में - शहद

* ग्रीष्म ऋतु में - गुड़

* वर्षा ऋतु में - सैंधव

* शरद ऋतु में -शर्करा

* हेमंत ऋतु में - सोंठ

* शिशिर ऋतु में - पीपर

* दोषानुसार औषधिय लाभ -

* कफ में हरड़ और सैंधव।

* पित्त में हरड़ और मिश्री।

* वात में हरड़ घी में भूनकर अथवा मिलाकर दें।

आयुर्वेद के श्रेष्ठ आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार हरड़ चूर्ण घी में भूनकर नियमित रूप से सेवन करने से तथा भोजन में घी का भरपूर उपयोग करने से शरीर बलवान होकर दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

नोट -

अति श्रम करने वाले, दुर्बल, उष्ण, प्रकृति वाले एवं गर्भिणी को तथा ग्रीष्मऋतु, रक्त व पित्तदोष में हरड़ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

* हरण (हरीतकी) के औषधि गुण -

* मंदाग्नि -

तिक्त रस व उष्णवीर्य होने से यह यकृत को उत्तेजित करती है। पाचक स्त्राव बढ़ाती है। आमाशयस्थ विकृत कफ का नाश करती है। अग्निमांद्य, ग्रहणी (अतिसार), उदरशूल, अफरा आदि रोगों में विशेषतः छोटी हरड़ चबाकर खाने से लाभ होता है। यह जठराग्नि के साथ-साथ रस रक्तादि सप्तधातुओं का निर्माण करती है ।

* मलावरोध -

3 से 5 ग्राम हरड़ चूर्ण पानी के साथ लेने से मल का पाचन होकर वह शिथिल व द्रवरूप में बाहर निकलता है, जिससे कब्ज का नाश होता है।

* ग्रहणी (अतिसार) -

हरड़ पानी में उबालकर लेने से मल में से द्रवभाग का शोषण करके बँधे हुए मल को बाहर निकालती है, जिससे दस्त में राहत मिलती है। हरड़ को पानी में उबालकर पीस लें। इसकी 2 ग्राम मात्रा शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से अथवा काढ़ा पीने से भी लाभ होता है। इससे आँतों को बल मिलता है, दोषों का पाचन होता है, जठराग्नि बढ़ती है।

* बवासीर -

2 ग्राम हरड़ चूर्ण गुड़ में मिलाकर छाछ के साथ देने से बवासीर के शूल, सूजन में आराम मिलता है।

* अम्लपित्त -

हरड़ चूर्ण, पीपर व गुड़ समान मात्रा में लेकर मिला लें। इसकी 2-2 ग्राम की गोलियाँ बनाकर 1-1 गोली सुबह-शाम लेने से अथवा 2 ग्राम हरड़ चूर्ण मुनक्का व मिश्री के साथ लेने से कण्ठदाह, तृष्णा, मंदाग्नि आदि अम्लपित्तजन्य लक्षणों से छुटकारा मिलता है।

* यकृत-प्लीहा वृद्धि -

हरड़ व रोहितक के 50 ग्राम काढ़े में एक चुटकी यवक्षार व 1 ग्राम पीपर चूर्ण मिलाकर लेने से यकृत व प्लीहा सामान्य लगती है।

* श्वाश, खाँसी-जुकाम में -

हरड़ कफनाशक है और पीपर स्निग्ध, उष्ण-तीक्ष्ण है। अतः 2 भाग हरड़ चूर्ण में 1 भाग पीपर का चूर्ण मिलाकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ 2सें 3 बार चाटने से कफ जन्य खाँसी, जुकाम, आदि में राहत मिलती है।

* कामला (यकृत शोथ ) में -

हरड़ अथवा त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर देने से पित्त का नाश होता है, यकृत की सूजन दूर होती है। जठराग्नि प्रज्ज्वलित होती है।

* प्रमेह रोग में -

अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब आता हो तो हरड़ के काढ़े में हल्दी तथा शहद मिलाकर देने से लाभ होता है।

* मूत्रकृच्छ विकार -

हरड़, गोक्षुर व पाषाणभेद के काढ़े में मधु मिलाकर देने से दाह व शूलयुक्त मूत्र-प्रवृत्ति में आराम मिलता है।

* वृषणशोथ में -

हरड़ के काढ़े में गोमूत्र मिलाकर लेने से वृषणशोथ नष्ट होता है।

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