आयुर्वेद चिकित्सा में मिट्टी का बहुत महत्व है, क्यो कि आयुर्वेद चिकित्सा में पंच महाभतो में एक है। सर्वप्रथम ये पांचमहाभूतो में आकाश, वायु, अग्नि ,जल ,पृथ्वी को चिकित्सा का अधार माना गया है। जैसे जल महाभूत का प्रयोग चर्मरोग, फोड़ा फुन्सीं, जलन में प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार वायु महाभूत से श्वास, कास आदि का, आकाश- महाभूतो का प्रयोग रक्त पित्त व पित्तविकारो आदि मे चिेकत्सा की जाती है लेकिन पंचमहाभूतो में मिट्टीअर्थात पृथ्वी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। मिट्टी से रोगो का हरने के कारण मिट्टी को सर्वरोगाहारी भी चिकित्सा का अभिन्न अंग है। चिकित्सा के लिये चिकनी, काली वा लाल मिट्टी श्रेष्ठ मानी जाती है। आयुर्वेद चिकित्सा मे प्रयोग के लिये खुले आकाश के नीचे 10 से 12 घेटे ठण्डे पानी में भीगी हुई मिट्टी को चिकित्सा में प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है। मिट्टी द्वारा रोगो को शान्त करने की विशेष शक्ति होती है। मिट्टी में स्थिति रेडियम तत्व जब जल से मिलता है तो उसकी रोग नाशक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिये विभिन्न जीव जन्तु मिट्ट के सम्पर्क में रहते है तो रोग होने सम्भावनाऐ कम होती है। सावधानियाः- डा० राव के अनुसार मिट्टी चिकित्सा करने वाले मरीज को खान पान, (पथ्य-अपथ्य) पर ध्यान अवश्य देना चाहिये जैसे तली चटपटी, तीखी मिर्च एवं खट्टा बादी नही खाना चाहिये। खाने में ज्यादा फाईबर वाले फलो का सेवन अवश्य करे। मिट्टी से चिकित्सा एव लाभः- आखों में थकान, धुधलापन, रोशनी कम होना, लाल होना आदि नेत्र विकारो में मिट्टी द्वारा चिकित्सा करने से उत्तम लाभ मिलता है रात्रि में 10 से 12 घण्टे भीगी मिट्टी को गोल आकार में टिकियां बना कर सुबह/शाम 30 से 40 मिनट तक दोनो आंखो के ऊपर सावधानी से रखे कि मिट्टी आंख के अन्दर न जाये। सह प्रक्रिया 15 से 20 दिनो तक करने से आंखो से सम्बधित रोगो में आराम मिलता है।
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